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Wild elephants | जंगली हाथियों की देखभाल के लिए हाई-पावर कमेटी, अदालत मित्र तमाम मुद्दों को रखने के लिए स्वतंत्र : हाई कोर्ट

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File Photo - Social Media

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नागपुर. सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के विपरीत वन विभाग की ओर से जंगली हाथियों को जू में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया गया है. इस संदर्भ में समाचार पत्रों में छपीं खबरों पर स्वयं संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकृत किया. याचिका पर सुनवाई के दौरान जंगली हाथियों की देखभाल तथा उनसे संबंधित हर मुद्दों का हल निकालने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की ओर से हाई-पावर कमेटी गठित होने का खुलासा किया गया. इसके बाद न्यायाधीश न्यायाधीश अतुल चांदुरकर और न्यायाधीश वृषाली जोशी ने याचिका में उठाए गए तमाम मुद्दों को कमेटी के समक्ष रखने की स्वतंत्रता अदालत मित्र को प्रदान की. साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया. अदालत मित्र के रूप में पी.एस. टेंभरे ने पैरवी की.

पूरे देश भर है कमेटी का दायरा

मध्यस्थ ट्रस्ट की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधि. सुनील मनोहर ने कहा कि 7 नवंबर, 2022 को त्रिपुरा हाई कोर्ट की ओर से जंगली हाथियों को लेकर एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाया गया था. इसके तहत हाई-पावर कमेटी गठित की गई. यह कमेटी त्रिपुरा राज्य के दायरे में काम कर सकती है. इसी तरह से एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की ओर से 3 मार्च, 2023 को एक आदेश जारी किया गया जिसमें इस कमेटी का दायरा बढ़ाकर पूरे देश में काम की जिम्मेदारी सौंप दी गई. 12 मई, 2023 को भी सुको की ओर से अन्य याचिका पर आदेश दिए गए जिसमें जंगली हाथियों से संबंधित सभी मुद्दों को कमेटी द्वारा सुलझाया जा सकता है. अत: इस याचिका के मुद्दों को भी कमेटी के समक्ष रखा जा सकता है.

हाथियों को लगेगी माइक्रोचिप, रहेगा वैज्ञानिक सुपरविजन

गत सुनवाई के दौरान अधि. मनोहर ने मध्यस्थ करने वाले ट्रस्ट को हाथियों की जिम्मेदारी सौंपने का अनुरोध किया था. उनका मानना था कि हाथियों के स्वास्थ्य की देखभाल और वैज्ञानिक सुपरविजन रखते हुए उनकी हर समस्या का हल खोजा जाएगा. इन हाथियों को माइक्रोचिप लगाई जाएगी जिससे उनकी हलचल पर नजर रखी जा सकेगी. उनकी अवस्था को भी निरंतर देखा जा सकेगा. जनहित याचिका का आधार ही गलत होने का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हाथी कैद नस्ल का जीव है. वह जंगली वन्यजीव नहीं है. इसलिए वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के बाहर का मसला है. इसके अलावा जिस ट्रस्ट के माध्यम से हाथियों की देखभाल की जानी है उसका रिलायंस इंडस्ट्रीज से लेना-देना नहीं है. ट्रस्ट को सीएसआर निधि के अंतर्गत केवल निधि प्राप्त होती है.



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