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Guru Purnima 2023 | आज है ‘गुरू पूर्णिमा’, जानिए पूजा का मुहूर्त और इस दिन की महिमा

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Guru Purnima

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सीमा कुमारी

नई दिल्ली: सनातन धर्म में जिस गुरू का स्थान ईश्वर से भी ज्यादा माना जाता है। उनकी पूजा के लिए हर साल आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा का दिन सबसे ज्यादा शुभ और फलदायी माना गया है। पंचांग के अनुसार, इस साल ‘गुरू पूर्णिमा’ (Guru Purnima 2023) का महापर्व आज यानी 3 जुलाई 2023, सोमवार को है। ‘गुरू पूर्णिमा’ का पावन पर्व महर्षि वेदव्यास की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यही कारण है कि इस पावन पर्व को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन पूजा-पाठ के साथ-साथ गुरु की सेवा भी की जाती है। धर्म शास्त्रों में निहित है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता है। व्यक्ति गुरु के बिना अज्ञानी रहता है। शिष्य के जीवन में व्याप्त अंधकार को गुरु दूर करते हैं। व्यक्ति विशेष को ज्ञान अर्जन करने और जीवन में सफल होने के लिए गुरू की सेवा और भक्ति करनी चाहिए। गुरु के आशीर्वाद से व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। अतः गुरु पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से गुरु की पूजा और सेवा करनी चाहिए। आइए जानें ‘गुरू पूर्णिमा’ का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा 2 जुलाई को रात में 8 बजकर 21 मिनट से  शुरू होकर अगले दिन 3 जुलाई को शाम 5 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि मान है। अतः 3 जुलाई को गुरू पूर्णिमा मनाई जाएगी।

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पूजा विधि

सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। अतः पूर्णिमा तिथि पर ब्रह्म बेला में उठकर सबसे पहले भगवान विष्णु और वेदों के रचयिता वेद व्यास जी को प्रणाम करें। नित्य कर्मों (घर की साफ-सफाई) से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। अब आचमन कर नवीन वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात सूर्य देव को जल अर्पित करें। इस समय निम्न मंत्र का जाप करें-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरू साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः

इसके बाद भगवान विष्णु और वेद व्यास जी की पूजा फल, फूल, धूप, दीप, अक्षत, हल्दी, दूर्वा आदि चीजों से करें। गुरु चालीसा और गुरु कवच का पाठ करें। अंत में आरती-अर्चना कर बल, बुद्धि, विद्या, सुख, समृद्धि, यश और कीर्ति की कामना करें। विद्या अर्जन करने वाले जातक गुरु पूर्णिमा के दिन मां सरस्वती और अपने गुरु की पूजा अवश्य करें। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की सेवा करें। साथ ही अपने गुरु को सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।



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