जब तानसेन बोले, “अब दाहिने हाथ से किसी को जुहार नहीं करूंगा”…..
*ग्वालियर, 09 दिसंबर 2024*
महान कला पारखी और *संगीत सम्राट तानसेन* की जीवन यात्रा भारतीय संगीत के इतिहास में अमूल्य धरोहर बन चुकी है। *राजा मानसिंह* की मृत्यु और उनके उत्तराधिकारी *विक्रमादित्य* से *ग्वालियर* का राज्याधिकार छिन जाने के बाद ग्वालियर के संगीतज्ञों की मंडली बिखरने लगी। इस समय, *तानसेन* ने ग्वालियर को छोड़कर *बृंदावन* की ओर रुख किया, जहाँ *स्वामी हरीदास* के सानिध्य में उन्होंने अपनी गायकी को नये आयाम दिए।
ग्वालियर छोड़ने के बाद तानसेन ने एक तरह से *बैराग्य* की जीवनशैली अपनाई। इस बीच, *बघेलखंड* के *राजा रामचन्द्र* की *कला-धर्मिता* की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी, और तानसेन उनके दरबार में पहुँचे, जहाँ उनकी उपस्थिति से राजसभा हमेशा संगीत और कला की गूंज से भर उठी।
हालाँकि, जब मुगल सम्राट *अकबर* के आदेश पर *जलाल खाँ कुर्ची* ने तानसेन को दरबार में लाने का शाही फरमान सुनाया, तो यह राजा रामचन्द्र के लिए एक अत्यंत दुःखद और भावुक क्षण था। *राजा रामचन्द्र* ने तानसेन को विदा करने के लिए न केवल कष्ट सहे, बल्कि उनकी विदाई ने सभी को भावुक कर दिया।
लोक इतिहासकार *डॉ. हरिहर निवास द्विवेदी* ने अपनी पुस्तक *”तानसेन”* में इस घटना का मार्मिक विवरण दिया है। वे लिखते हैं कि तानसेन को विदा करते हुए *राजा रामचन्द्र* ने उन्हें *चौडोल* में बिठाया और पूरे नगर में जुलूस के साथ विदाई दी। इस मार्ग में जब तानसेन ने प्यास के कारण अपनी चौडोल रुकवाई, तो उन्होंने देखा कि *राजा रामचन्द्र* स्वयं उनकी चौडोल का एक *बल्ली* कंधे पर उठाए हुए थे, और उनके तन पर कोई वस्त्र न थे। यह दृश्य देखकर तानसेन अत्यंत भावुक हो गए, और उनकी आँखों में आंसू आ गए।
राजा रामचन्द्र ने तानसेन से कहा, *”राजन, आपने मेरे लिए जितना कष्ट सहे हैं, उसे मैं कभी चुका नहीं सकता, लेकिन मैं एक वचन देता हूँ कि जिस दाहिने हाथ से मैंने आपको जुहार (प्रणाम) किया है, उस हाथ से अब किसी अन्य को प्रणाम नहीं करूंगा।”* यह सुनकर राजा रामचन्द्र की आँखों में आँसू थे, और वह दुःखी हृदय से अपनी राजधानी की ओर बढ़े, जबकि तानसेन ने आगरा की राह पकड़ी।
अनुश्रुति के अनुसार, तानसेन ने अपना वचन जीवनभर निभाया। जब राजा रामचन्द्र की विदाई हुई, तब तानसेन ने *राग “बागेश्री”* में एक ध्रुपद रचना प्रस्तुत की, जिसमें ये पंक्तियाँ थीं:
*”आज तो सखी री रामचन्द्र छत्रधारी, गज की सवारी लिए चले जात बाट हैं।*
*कित्ते असवार सो हैं, कित्ते सवार जो हैं, कित्ते सौ हैं बरकदार अवर कित्ते आनंद के ठाठ।”