Deepali Suicide Case | उप वनसंरक्षक शिवकुमार को HC से राहत; बहुचर्चित दीपाली आत्महत्या प्रकरण, IPC 312 को लेकर चार्जशीट खारिज
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नागपुर. मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प की आरएफओ दीपाली चव्हाण के बहुचर्चित आत्महत्या मामले में मुख्य आरोपी बनाए गए गुगामल परिक्षेत्र के उप वनसंरक्षक विनोद शिवकुमार को इसके पूर्व हाई कोर्ट की ओर से अदालत की अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ने की कड़ी शर्तों के आधार पर जमानत प्रदान की जा चुकी है.
अब पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर ही खारिज करने की मांग कर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. याचिका पर अब लगभग एक वर्ष तक चली सुनवाई के बाद शिवकुमार की ओर से उनकी अर्जी को आईपीसी की धारा 312 के तहत ही सीमित रखी जाए. साथ ही इसी के अनुसार एफआईआर और चार्जशीट को खारिज करने के आदेश देने का अनुरोध किया गया. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद न्यायाधीश रोहित देव और न्यायाधीश एम.डब्ल्यू. चांदवानी ने आईपीसी की धारा 312 के तहत दर्ज एफआईआर और चार्जशीट को खारिज कर दिया.
अन्य आरोपों पर निचली अदालत में सुनवाई
सुनवाई के दौरान अदालत में उपस्थित विनोद शिवकुमार से भी इसकी पूछताछ की गई. जिसे लेकर उनके द्वारा स्वीकृति देने के बाद उक्त आदेश जारी किए गए. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि अन्य धाराओं के तहत भी एफआईआर दर्ज की गई है. जिसे लेकर निचली अदालत में सुनवाई के दौरान पक्ष रखा जाएगा किंतु इसके लिए भी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता बरकरार रखने का अनुरोध किया गया.
उल्लेखनीय है कि दीपाली चव्हाण मेलघाट अंतर्गत हरिसाल वनक्षेत्र की वनपरिक्षेत्र अधिकारी थी. दीपाली ने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निरंतर मानसिक प्रताड़ित किए जाने का कारण देते हुए त्रस्त होकर आत्महत्या की थी. 25 मार्च 2021 को दीपाली चव्हाण ने स्वयं की सर्विस रिवाल्वर से आत्महत्या की थी. जिसके लिए कुछ अधिकारियों को दोषी करार देते हुए सुसाइड नोट भी छोड़ रखा था. जिसके आधार पर पुलिस ने उप वनसंरक्षक विनोद शिवकुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
नहीं बनता प्रताड़ना का मामला
याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि उप वनसंरक्षक के रूप में उन्हें दी गई जिम्मेदारी का वहन किया जा रहा था. इसमें पीड़िता को किसी तरह से भी परेशान करने का कोई उद्देश्य ही नहीं था. वरिष्ठों की ओर से जो आदेश होते थे उन्हीं आदेशों पर अमल होता था. याचिकाकर्ता के वकील का मानना था कि पुलिस ने पूरे तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया है.
प्रशासकीय कामकाज की दृष्टि से जो निर्देश दिए जाते थे. केवल उन्हीं पर अमल होता था जिससे प्रताड़ना का कोई मामला नहीं बनता है. इसके बावजूद पुलिस ने धारा 306 के तहत भी मामला दर्ज किया है. सरकारी पक्ष का मानना था कि शिवकुमार जानबूझकर दीपाली को मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान किया करता था. कई लोगों के सामने ही अपमान भी किया करता था. इसी वजह से निराशा में डूबी दीपाली ने तंग आकर आत्महत्या कर ली, जिसका उल्लेख उसके सुसाइड नोट में भी किया गया था.
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