थकती वर्दी,टूटती सांसे, असंवेदनशील नौकरशाही और असमय काल कवलित होती पुलिस…..

*थकती वर्दी, टूटती सांसे, असंवेदनशील नौकरशाही और असमय काल कवलित होती पुलिस*
आखिर क्यों पुलिस के मजबूत कंधे चौडे सीने की भीतर धडकता दिल अचानक ही खामोश होता जा रहा है।
क्यों पुलिस के कार्यापालिक बल कर्मचारी असामायिक मृत्यु के काल में समा रहे हैं।
कोई कभी वाहन दुर्घटना में मर रहा है तो कोई जीवन से बेहतर मृत्यु को समझकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेता है। कभी किसी कर्मचारी का हृदय जीवन के बोझ को उठाने में असमर्थ साबित हो रहा है।
पुलिस विभाग के कितने ही कर्मचारी हैं जिनकी नींद पूरी नहीं होने के कारण वो अवसाद में डूबे हैं, चिडचिडे रहते हैं, चिंता में डूबे रहते हैं जिसको मिटाने के चक्कर शराब का सेवन शूरू करते हैं शराब की लत में पड जाते हैं।
कितने ही कर्मचारी है जो कभी दिन में कभी सुबह कभी शाम और कभी रात में एक बजे भोजन करने के कारण अपच का शिकार हो रहे हैं जिससे धीरे धीरे मोटापे को बढावा मिलता है और मोटापा धीरे धीरे हृदय संबंधित रोगों को आमंत्रण देता है।
पुलिस के कितने ही जवान हैं जो अपने निवास स्थान के नजदीक के थानों पर आवेदन देने के पश्चात भी स्थांतरित नहीं किये जाते हैं और पूरा शहर पार कर ड्यूटी करने के लिये बिना ही किसी कारण के बाध्य हैं और इसी आपाधापी में वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाते है।
पुलिस के कितने ही कर्मचारी निरंतर बारह घंटे से अधिक की नौकरी कर रहे हैं जिन्हें छुट्टी मांगने पर समय पर छुट्टी भी नहीं मिलती है और अगर छुट्टी मिलती भी है तो अधिकारी आमद रवानगी में नई नई प्रकार की शर्तें थोपते हैं।
सैंकडो कर्मचारियों को मामूली से मामलों में विभागीय जांच के नाम पर पदोन्नति के लाभ से वंचित कर रखा जाता है। आखिर पुलिस विभाग के आला अफसरान, कल्याण विभाग ये देख पा रहा है कि उसके कितने कर्मचारी हर वर्ष कार्य की विपरीत परस्थितियों के कारण वाहन दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, कितने कर्मचारी अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेते हैं और कितने कर्मचारियों की जीवनरेखा हृदयघात से समाप्त हो जाती है।
क्या वो कार्य की परस्थितियों को बेहतर बनाने के लिये कोई प्रयास कर रहे हैं या केवल खाना पूर्ती कर रहे हैं?